Rani Padmavati biography – हमारे इस लेख में हम आपको भारतीय इतिहास के एक अत्यंत महत्वपूर्ण और सम्मानित व्यक्तित्व, रानी पद्मावती (पद्मिनी) के बारे में बताने जा रहे हैं। इस लेख के माध्यम से हम विस्तृत और संपूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे जो आपके लिए दर्शकों के बीच अपरिवर्तनीय रहेगी। रानी पद्मिनी एक वीरांगना थीं, जिन्होंने अपने साहस, सौंदर्य, और विशेष विवेक से लोगों का मन भाया था। उनके जीवन का यह अध्भुत चरित्र भारतीय समाज में एक अद्भुत उदाहरण है, जो लोगों को साहस, संघर्ष और न्याय के मार्ग पर चलने का प्रेरणा देता है।
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Padmavat ki Rani Padmini biography history– रानी पद्मावती (पद्मिनी) का इतिहास (पद्मावत)
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के किलों का इतिहास एक अद्भुत कथा है। यहाँ के किले न केवल राजपूतों की बहादुरी का प्रतीक हैं, बल्कि इन्हें सुंदर रानी पद्मावती या पद्मिनी की प्रेम कहानी के लिए भी जाना जाता है। रानी पद्मावती के जीवन की कहानी वीरता, त्याग, त्रासदी, सम्मान, और छल की दास्तान है। रानी पद्मिनी अपनी सुंदरता के लिए समस्त भारत में प्रसिद्ध थीं। हालांकि, रानी पद्मिनी के अस्तित्व के बारे में इतिहास में कोई निश्चित प्रमाण नहीं है। इसके बारे में लिखित दस्तावेज़ों का पहली बार प्रस्तुतिकरण मालिक मोहम्मद जायसी ने 1540 में किया था, जिससे कि यह घटना के लगभग 240 साल बाद के समय में लिखा गया था।
Rani Padmavati biography history– रानी पद्मावती (पद्मिनी) का इतिहास
पद्मावती, रावल रतन सिंह, और अलाउद्दीन खिलजी के जीवन का एक रोमांचक बिंदु सबकी आकर्षण बन जाता है। कुछ लोग पद्मावती को सिर्फ एक कहानी का चित्रित रूप मानते हैं। लेकिन अलाउद्दीन के इतिहासकारों ने मुस्लिम शासक के राज्य में इस विजय को अपनी पुस्तकों में उच्च स्थान दिया, ताकि वे सिद्ध कर सकें कि राजपूताना में सुल्तान ने विजय प्राप्त की थी। हालांकि, राजपूत और हिन्दू समुदाय इस कहानी को सिर्फ एक कथा मानते हैं और इसमें पूर्णता से विश्वास नहीं रखते।
Rani Padmavati Family– रानी पद्मावती परिवार
रानी पद्मावती, राजा गन्धर्व और रानी चम्पावती की अद्भुत बेटी थीं। वो सिंघल कबीले के निवासी थे और उनका घरेलू तोता ‘हीरामणि’ था, जिससे रानी पद्मावती अच्छा स्नेह रखती थी। पद्मावती की सुंदरता से सजी हुई राजकुमारी की छवि किसी भी व्यक्ति का मन मोह लेती थी। उनकी खूबसूरती को कविता में विशेष महत्व दिया गया है।
उसमें कवि ने पद्मावती की सुंदर रूपरेखा का वर्णन किया है, कहते हैं जैसे वे देवी स्वयं हैं। पद्मावती की छाती से बहते हुए पानी का वह रंगरेला सौंदर्य उन्हें बिल्कुल स्पष्ट दिखता था, और जब वे पान खातीं तो पान के लाल रंग की मिठास उनके गले में बह जाती थी। वे एक आकर्षक सौंदर्य सम्पन्न रानी थीं, जिसके सुंदर रूप को चित्रित किया गया उस कविता में। उनके रूप का सुंदर सा वर्णन बहुत चार-चन्द्रिक था, जिसमें उनकी रचनाकारी की कविता के सभी अंश बांटे गए थे।
पद्मावती के पिता ने एक विशेष स्वयंवर आयोजित किया था, जिसमें देश के सभी हिन्दू राजा और राजपूतों को आमंत्रित किया गया था। उस समय, एक छोटे से राज्य के राजा, मलकान सिंह, ने पहले ही राजकुमारी पद्मावती के हाथ मांग लिया था। चित्तौड़ के राजा रावल रतन सिंह भी उस स्वयंवर में उपस्थित थे, लेकिन उनकी पहली से १३ रानियाँ थीं। रावल रतन सिंह ने मलकान सिंह को स्वयंवर में पराजित कर दिया और रानी पद्मावती से विवाह कर लिया। वे अपनी पत्नी पद्मावती के साथ चित्तौड़ पहुंचे।
Rani Padmavati Story– रानी पद्मावती की कहानी
रानी पद्मावती, चित्तौड़गढ़ राज्य की महारानी थीं, जिनकी सुंदरता और शौर्य का ज़िक्र इतिहास में अभी तक चमकता है। उनकी कहानी हमें यह दिखाती है कि कैसे वे अपने समय की एक सशक्त महिला थीं, जिन्होंने अपने परिवार को और राज्य को संभालने के लिए अपने शौर्य का प्रदर्शन किया।
12 वीं एवं 13 वीं शताब्दी के दौरान, चित्तौड़ में राजपूत राजा ‘रावल रतन सिंह’ राज्य करते थे, जो सिसोदिया राजवंश के अंश थे। वे वीर और महान योद्धा थे। रावल रतन सिंह अपनी पत्नी पद्मावती से अद्भुत प्रेम करते थे, और इसके पूर्व उनकी 13 शादियाँ हो चुकी थीं, लेकिन पद्मावती के बाद उन्होंने किसी से विवाह नहीं किया था। राजा एक उत्कृष्ट शासक थे, जो अपनी प्रजा से अत्यंत प्रेम करते थे और कला में बहुत रुचि रखते थे। उन्होंने देश के सभी कलाकारों, नर्तकियों, कारीगरों, संगीतकारों, कवियों, गायकों आदि को राजभवन में स्वागत किया और उन्हें सम्मानित किया। उनके राज्य में एक अद्भुत गायक ‘राघव चेतक’ भी रहता था। परंतु राघव को गायन के अलावा काला जादू का भी ज्ञान था, जो किसी को पता नहीं था।
राघव ने इस विशेषता का इस्तेमाल अपने राजा के खिलाफ करने का प्रयास किया, जिससे एक दिन उसे गिरफ्तार कर लिया गया। राजा को यह बात पता चलने पर, उन्होंने उसे सजा के तौर पर उसका मुंह काला कर दिया और उसे गधे पर बिठाकर अपने राज्य से निष्कासित कर दिया। उस दुर्भाग्यपूर्ण सजा के परिणामस्वरूप, राजा रतन सिंह के शत्रुओं और वैरियों की संख्या में वृद्धि हो गई, जिससे राघव चेतक ने राजा के विरुद्ध बगावत कर दी।
इस कहानी में अब अलाउद्दीन खिलजी प्रवेश करते हैं। राघव चेतक, जिसे इस अपमान के बाद दिल्ली की ओर बढ़ना पड़ा, ताकि वह दिल्ली के सुल्तान से हाथ मिला सके और चित्तोर पर धावा बोल सके। राघव चेतक ने अलाउद्दीन खिलजी के बारे में विस्तृत जानकारी रखी थी, लेकिन उसे यह भी पता था कि सुल्तान दिल्ली के पास जंगल में रोज़ शिकार करने जाता था। इसलिए वह रोज़ जंगल में बैठे हुए बांसुरी बजाता रहता था।
एक दिन, उसकी किस्मत बदल गई, जब वह अलाउद्दीन खिलजी के जंगल में पहुंचा। वहां पहुंचते ही सुरीली आवाज़ में बांसुरी बजाना शुरू कर दिया। उसकी खूबसूरत बांसुरी की मधुर आवाज़ अलाउद्दीन खिलजी और उसके सैनिकों के कानों में पड़ी और सभी आश्चर्यचकित हो गए। अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सैनिकों को उस इंसान को ढूढ़ने के लिए भेजा और राघव को सैनिक ले आए। अलाउद्दीन खिलजी ने उसे दिल्ली में अपने दरबार में आने के लिए कहा।
राजनीतिक चातुर राघव ने इस मौके का फायदा उठाते हुए सुल्तान से कहा कि जब उनके पास इतनी सुंदर सामग्री है, तो वह क्यों इस साधारण से संगीतकार को अपने राज्य में राज्य में बुला रहे हैं। सुल्तान विचारों में खोए और राघव से अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करने के लिए विनती की। राघव ने सुल्तान को बताया कि वह एक विशेष प्रकार का विश्वासघाती है। उसने अलाउद्दीन खिलजी को पद्मावती की सुंदरता का वर्णन बहुत ही प्रभावशाली तरीके से किया किया, जिससे सुल्तान उत्तेजित होकर चित्तौड़ पर हमले करने के बारे में सोचने लगा। अलाउद्दीन खिलजी सोचता है कि उसके हरम की सुंदरता को इस तरह से बढ़ाना चाहिए।
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अलाउद्दीन खिलजी की चित्तौड़गढ़ में चढ़ाई
अलाउद्दीन खिलजी, दिल्ली के सुल्तान थे, जो भारतीय इतिहास में अपने विजयी अभियानों के लिए प्रसिद्ध हुए थे। उनका नाम राजपूताना में भयानकता के प्रतीक के रूप में जाना जाता था। उनका एक सपना था कि वे चित्तौड़गढ़ का आधिकारिक स्वामी बनें, और उन्होंने चित्तौड़गढ़ के राजा रतन सिंह और उनकी सुंदर रानी पद्मावती के साथ जंग करने का फैसला किया।
खिलजी सेना के साथ तैनात होकर, अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ में प्रवेश के लिए तैयारियों की शुरुआत की। उनकी सेना में बहुत से वीर और अत्यंत प्रतिभाशाली योद्धा थे, जो चित्तौड़गढ़ को जीतने के लिए पूरी शक्ति से युद्ध के लिए तैयार थे। चित्तौड़गढ़ के राजा रतन सिंह भी अपने सैनिकों के साथ अपने किले की रक्षा के लिए तैयार थे।
पद्मावती की सुंदरता की चर्चा से प्रभावित होकर अलाउद्दीन खिलजी चित्तोर की ओर अपनी चढ़ाई शुरू करते हैं। पहुंचते ही वे देखते हैं कि चित्तोर में सुरक्षा व्यवस्था अत्यंत पुख्ता है, इसके परिणामस्वरूप, उन्हें निराशा का सामना करना पड़ता है। पद्मावती की सुंदरता के प्रति उनकी चाह और भी बढ़ती जा रही थी, जिससे उन्होंने रावल रतन सिंह को एक संदेश भेजा और साफ कर दिया कि हैं कि वे रानी पद्मावती से एक बहन के रूप में मिलना चाहते हैं।
राजपूत धर्म के अनुसार, किसी औरत से मिलना चाहना शर्म की बात मानी जाती है, और रानी को बिना पर्दे के देखने की इजाज़त किसी को नहीं मिलती। अलाउद्दीन खिलजी एक बहुत ताक़तवर शासक थे, जिसके सामने किसी को कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी। रतन सिंह निराश होकर सुल्तान के क्रोध से बचने और अपने राज्य की सुरक्षा को बनाए रखने के लिए उसकी इच्छा को स्वीकार कर लेते हैं।
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रानी पद्मावती ध्यानपूर्वक अपने राजा की बात स्वीकार करती हैं। इसके साथ ही, उनकी एक विशेष शर्त भी होती है, कि सुल्तान उन्हें सीधे नहीं देख सकते, बल्कि उन्हें उनके आईने में ही प्रतिबिम्बित करना होगा। अलाउद्दीन खिलजी उनकी इस शर्त को मान लेते हैं। दोनों का एक निश्चय लिया जाता है, जिसके लिए विशेष तैयारी की जाती है। खिलजी अपने सबसे ताकतवर सैनिकों के साथ किले में जाता है, जो किले की गुप्त रूप से देखभाल भी करते हैं।
अलाउद्दीन खिलजी, पद्मावती को आईने में देखकर मोहित हो जाते हैं, और वह तय कर लेते हैं कि वे उन्हें हासिल करने के लिए कुशल योजना बनाएंगे। अपने दरबार में लौटते समय रतन सिंह, खिलजी के साथ होते हैं। खिलजी इस मौके का फायदा उठाते हुए रतन सिंह को अगवा कर लेते हैं, वह पद्मावती को उनके राज्य से राजा के बदले रानी पद्मावती की मांग करते हैं।
संगारा चौहान, राजपूत जनरल गोरा और बादल ने अपने राजा की रक्षा के लिए सुल्तान के खिलाफ युद्ध करने का निर्णय लिया। पद्मावती के सहयोग से वे दोनों सेनापतियों ने एक योजना तैयार की। इस योजना के तहत वे खिलजी को एक संदेश भेजते हैं कि रानी पद्मावती तैयार हैं उनके पास आने के लिए। अगले दिन सुबह, 150 पालकियाँ खिलजी के शिविर की ओर पलायन करती हैं। जहाँ राजा रतन सिंह को बंधक बनाए रखा गया था, उस जगह पालकियाँ रुक जाती हैं।
खिलजी के सभी सैनिक और रतन सिंह यह देखकर यकीन करते हैं कि चित्तोर से रानी पद्मावती को लेकर आये हैं। सभी को विचरणा में डालते हुए, इन पालकियों से रानी या उनकी दासी नहीं बल्कि रतन सिंह की सेना के जवान निकलते हैं, जो जल्दी से रतन सिंह को छुड़ाकर खिलजी के घोड़ों में सवार होकर चित्तोर की ओर भाग जाते हैं। गोरा युद्ध में वीरगति प्राप्त करता है, जबकि बादल राजा को सुरक्षित किले में वापस पहुंचा देता है।
खिलजी अपनी हार के बाद क्रोध में भरकर अपनी सेना को चित्तोर के खिलेरी के द्वार तक ले जाता है। अलाउद्दीन खिलजी की सेना बेताबी से रतन सिंह के किले को तोड़ने का प्रयास करती है, परन्तु वह सफल नहीं हो पाती। इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना को किले के चारों ओर घेरने का आदेश देता है। घेराबंदी के लिए एक बड़ी और शक्तिशाली सेना को तैयार किया जाता है। अनेक दिनों तक वे घेराबंदी में दृढ़ता से ठहरे रहते हैं, जिससे किले के राजमहल में खाने-पीने की कमी महसूस होती है।
अंत में रतन सिंह ने अपनी सेना को आदेश दिया कि किले के दरवाजे खोले जाएं और दुश्मनों से मरते दम तक लड़ाई चलाई जाए।रतन सिंह के इस निर्णय के बाद, रानी हताश हो जाती है, उसे लगता है कि खिलजी की विशाल सेना के सामने उसके राजा की हार निश्चित है और उसे विजयी सेना के साथ जाना होगा। इसलिए पद्मावती निश्चय करती है कि वह जौहर कर लेगी, जिसका मतलब होता है आत्महत्या, जिसमें रानी के साथ किले में सभी महिलाएं अपने पतियों की याद में आग में छलक जाती हैं।
Rani Padmavati Death– रानी पद्मावती की मृत्यु
रानी पद्मावती की मृत्यु एक दिलचस्प परिवर्तनकारी घटना थी, जो उनके जीवन के आखिरी दिनों में हुई। उन्होंने जौहर की परंपरा को पालते हुए अपने प्रिय पति राजा रतन सिंह के साथ अद्भुत साहस और प्रेम का प्रदर्शन किया।
जौहर की परंपरा से पहले, रानी ने अपने राजमहल में एक अग्नि कुंड बनाकर उसमें चढ़कर अपने शरीर को धूप में समर्पित करने का निर्णय लिया। 26 अगस्त 1303 को पद्मावती और किले की अन्य सभी महिलाएं जौहर के लिए तैयार हो जाती हैं और अग्नि में जाकर अपने पतिव्रता धर्म का पालन करते हुए वीरगति को प्राप्त हो जाती है।
किले की महिलाओं के निधन के बाद, वहां के पुरुषों को लड़ने का कोई कारण नहीं रहता। उनके सामने दो विकल्प होते हैं – वे दुश्मनों के सामने हार मान सकते हैं या मरने तक लड़ते रह सकते हैं। अलाउद्दीन खिलजी की विजय हो जाती है, वह चित्तोर के किले में प्रवेश करता है, लेकिन वहां सिर्फ मृत शरीर, राख और हड्डियाँ ही पाता है।
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Rani Padmavati Movie– रानी पद्मावती पर फिल्म
रानी पद्मावती पर एक फिल्म (रानी पद्मावती मूवी) की कहानी भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय को दर्शाती है। यह फिल्म राजपूताना की शक्तिशाली रानी, पद्मावती, की अपनी व्यक्तिगत मानसिकता और दृढ़ता के बीच वह समय के साम्राज्यिक संघर्षों और सैन्य की गर्वनिष्ठता का परिचय देती है।
इस फिल्म में उसके प्रतिरोधी राजा रतन सिंह और दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के बीच संघर्ष दिखाया गया है, जिसमें राजपूत वीरता, सम्मान और साहस का प्रतिबिम्ब है।
इस फिल्म में पद्मावती की शक्ति, सौंदर्य और राजपूती मर्यादा को सराहा गया है, जो उसे एक साहसी और शानदार राजकुमारी के रूप में प्रस्तुत करता है। यह चलचित्र अपनी श्रेष्ठ कला, भव्य सेट डिज़ाइन और गीतों के लिए प्रसिद्ध है, जो दर्शकों को राजस्थानी संस्कृति के अनूठे रंग से निहारती है।